अपनी सासों से मिल अाया।
आज तड़के मैं फिर दौड़ आया ।
दिनों से शिकायत थी दिल को,
दो पल खुद के साथ बिता आया ।
सुबह बहुत कोहरा था हर तरफ,
सारी कहानियाँ मैं सुलझा आया ।
सूरज तो बादल ताने सो रहा था,
उसकी चौखट खटखटा आया।
मंजिल का ख्याल था कहाँ मुझे,
हर कदम का लुफ्त उठा आया ।
उड़ने की अब आरजू नहीं मुझको
क्षितिज का आस्मां जो छू आया ।
सत्, सब्र, संयम, संघर्ष, समर्पण -
अब सब का मतलब समझ आया ।
शबनम, बादल, धूप, मंदिर, रास्ते -
ख्वाबी सब से नाते जोड़ आया ।
(Don't look for meaning, there is none)