Tuesday, September 23, 2014

Morning Ghazal

अपनी सासों से मिल अाया।
‌आज तड़के मैं फिर दौड़ आया ।

दिनों से शिकायत थी दिल को,
दो पल खुद के साथ बिता आया ।

सुबह बहुत कोहरा था हर तरफ,
सारी कहानियाँ मैं सुलझा आया ।

सूरज तो बादल ताने सो रहा था,
उसकी चौखट खटखटा आया।

मंजिल का ख्याल था कहाँ मुझे,
हर कदम का लुफ्त उठा आया ।

उ‍‌ड़ने की अब आरजू नहीं मुझको
क्षितिज का आस्मां जो छू आया ।

सत्, सब्र, संयम, संघर्ष, समर्पण -
अब सब का मतलब समझ आया ।

शबनम, बादल, धूप, मंदिर, रास्ते -
ख्वाबी सब से नाते जोड़ आया ।




(Don't look for meaning, there is none)

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